يشارك أكثر من 340 أسرة منتجة وتاجرا صغيرا ووجهة
حاضنة، في معرض الأسر المنتجة «صنعتي 2018» في نسخته الرابعة، الذي تُنظمه
غرفة الشرقية بالتعاون مع شركة الظهران إكسبو، الذي افتتحه أمير المنطقة الشرقية سعود بن نايف بن عبدالعزيز أمس، ويستمر خمسة أيام.
وعبر
أمير المنطقة خلال جولته عن إعجابه بإبداعات الأسر المنتجة في مختلف المجالات، والاحترافية الكبيرة التي ظهروا عليها خلال النسخة الرابعة للمعرض، وتنوع معروضات الأسر المشاركة فيه ما بين الملابس والعطور والأطعمة
والحلويات والمنتجات الحرفية التراثية وغيرها.
من جانبه، أوضح رئيس غرفة الشرقية عبدالحكيم الخالدي أن الغرفة عملت خلال النسخ الثلاث الماضية على أن يُمثل هذا المعرض موسما للأسر المنتجة لعرض منتجاتهم وتحقيق أهدافهم فيما يتعلق بتعريفهم بالمستهلكين، متمنيا أن يؤدي المعرض إلى دعم
الأسر المنتجة والذهاب بها نحو آفاق أرحب من العمل الحر، وأن يكون قيمة مضافة في الاقتصاد الوطني الآخذ في النمو بسواعد أبناء هذا الوطن المعطاء.
وأشار إلى أن الحراك الرسمي بشأن الأسر المنتجة، التي جاءت ضمن مستهدفات رؤية
2030، بجعلها قطاعا ذا قيمة مضافة في الاقتصاد الوطني، وما تبعها من موافقة
مجلس الوزراء على اللائحة التنفيذية لتنظيم عمل الأسر المنتجة، وفر مزيدا من الاهتمام بقطاع الأسر المنتجة من ناحية التمويل لهذه الأسر أو ضبط طريقة
عملها بجعلها كيانات تعتمد على ذاتها، وهو نفسه ما تسعى إلى تحقيقه غرفة
الشرقية منذ انطلاقها في تدشين معرضها السنوي للأسر المنتجة.
وأفاد الخالدي أن الغرفة منذ أن تبنت فكرة إقامة المعرض، وهي تهدف أن تكون الأسر
المنتجة في المنطقة الشرقية رقما فاعلاً في الاقتصاد الوطني، فاجتهدت بوضع
الأسر المنتجة ضمن حيز اهتمامها، وذلك بالاستمرار في طرح المبادرات وإقامة
الفعاليات الداعمة لهم، منوها إلى أن الغرفة كانت قد أسست مركزا مختصا
بالمسؤولية الاجتماعية، وأوكلت إليه تنفيذ الأنشطة المتعلقة بالأسر المنتجة
ومتابعتها والعمل على تطويرها.
من ناحيته، أشار الأمين العام
للغرفة عبدالرحمن الوابل إلى أن «صنعتي 2018» بجانب أنه منفذ لعرض منتجات الأسر المنتجة، يُعزّز كذلك من تقويتها وقدرتها التنافسية نحو اهتمام أكبر
بالجودة، لافتا إلى أن هذه النسخة الرابعة، تأتي استمرارا لما توليه الغرفة
من أهمية للأسر المنتجة.
وأوضح أن معرض هذا العام يضم 341 جناحاً، منها 299 أسرة منتجة تعرض العديد من المنتجات المتنوعة ما بين منتجات
الملابس أو المأكولات بأنواعها، فضلاً عن أجنحة العطور وأعمال الديكور،
وهناك تسعة أجنحة لعرض المنتجات الحرفية التراثية، إلى جانب أجنحة الجمعيات
والمراكز التنموية الحاضنة للأسر المنتجة، حيث يشهد المعرض مشاركة (20) جمعية ومركزا تنمويا من الجمعيات والمراكز التي تحتضن أعمال الأسر المنتجة، إضافة إلى 13 ركناً للتاجر الصغير، الذي حقق نجاحا كبيرا في الأعوام
السابقة، وركن لعرض منتجات نزيلات إصلاحية الدمام، إضافة إلى حديقة الأطفال من سن 3- 10 سنوات، التي تحتوي على عدد من العروض الجاذبة للأطفال.
Tuesday, December 11, 2018
Wednesday, November 28, 2018
चीनी से भी ज्यादा खतरनाक है सोडा, बढ़ जाता है टाइप 2 डायबिटीज का खतरा
क्या आप भी हर मीठी चीज को देखकर डर जाते हैं, उसे खाने से पहले दस बार
सोचते हैं। आपको लगता है कि इससे कहीं शुगर न बढ़ जाए। लेकिन कनाडा में हुए
एक नए अध्ययन में कहा गया है कि हर मीठी चीज नुकसान नहीं करती है। प्राकृतिक रूप से मीठे खाद्य पदार्थ से कोई खतरा नहीं होता है। खतरा है तो
सिर्फ कृत्रिम रूप से मीठी चीजों से। खासतौर पर सोडा, डिब्बाबंद जूस या अन्य पेय पदार्थ।
कृत्रिम रूप से मीठे पेय से बनाएं दूरी
कनाडा के सेंट माइकल हॉस्पिटल और टोरंटो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 155 अध्ययनों के नतीजों को संकलित कर उनकी समीक्षा की और पता लगाया कि फ्रक्टोज शर्करा वाले विभिन्न खाद्य पदार्थ मधुमेह और स्वस्थ्य रोगियों के रक्त शर्करा के स्तर को किस तरह से प्रभावित करते हैं। अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि कृत्रिम रूप से मीठे पेय लोगों को अन्य शर्करा वाले खाद्य पदार्थों की तुलना में टाइप 2 मधुमेह के खतरे को बढ़ा सकते हैं। अतिरिक्त फ्रक्टोज के साथ ज्यादा ऊर्जा देने वाले और कम पोषक तत्वों से तैयार पेय रक्त शर्करा के स्तर को हानिकारक रूप से बढ़ा देते हैं।
शहद, नेचुरल फ्रूट जूस से खतरा नहीं
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि जिन खाद्य और पेय पदार्थों में प्राकृतिक रूप से फ्रक्टोज मौजूद थे, उनमें कोई जोखिम नहीं मिला जैसे फल, सब्जियां, प्राकृतिक फलों के रस और शहद। जबकि मीठे पेय में जब अलग से फ्रक्टोज डालते हैं तो ये खून में पहुंचकर तेजी से रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा देते हैं। अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. जॉन सिवेनपाइपर ने कहा, अध्ययन नतीजों से मधुमेह की रोकथाम और प्रबंधन में फ्रक्टोज के महत्व को समझ सकते हैं। इसके लिए अभी और बड़े स्तर पर अध्ययन की जरूरत है। उन्होंने आगे कहा, ‘जब तक अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती है, तब तक सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों को पता होना चाहिए कि रक्त ग्लूकोज पर फ्रक्टोज शर्करा के हानिकारक प्रभाव ऊर्जा और खाद्य स्रोत के बीच होते हैं।
बेकरी की चीजें खाने से बचें
इससे पहले यह स्पष्ट नहीं था कि कौन सी मीठी चीजें खाई जा सकती हैं और कौन सी नहीं। लोग सोचते थे कि जिस भी चीजों में मीठा हो, उसे खाने से परहेज करना चाहिए। नए अध्ययन में इसे और स्पष्ट करते हुए यह समझाया गया है कि कोल्ड ड्रिंक, नाश्ते के लिए खाने वाली डिब्बाबंद चीजें, बेकरी उत्पाद, मीठे पकवान, इन सभी चीजों में अलग से चीनी डाली जाती है, इसलिए ये ज्यादा नुकसानदायक हैं।
अतिरिक्त कैलोरी भी घातक
शोधकर्ताओं की टीम ने अध्ययन में पाया कि फ्रक्टोज शर्करा वाले अधिकांश खाद्य पदार्थों का तब तक रक्त ग्लूकोज के स्तर पर हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है, जब तक कि अतिरिक्त कैलोरी नहीं देते हैं। मधुमेह के रोगियों में फलों रस और फल रक्त ग्लूकोज और इंसुलिन के नियंत्रण पर भी फायदेमंद असर डाल सकता है। लेकिन जिन खाद्य पदार्थों में पोषक तत्व कम होते हैं और ऊर्जा ज्यादा देते हैं, वो हानिकारक हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि फल की उच्च फाइबर सामग्री रक्त ग्लूकोज के स्तर में सुधार में मदद कर सकती है, क्योंकि यह शर्करा को धीरे-धीरे जारी करता है।
कृत्रिम रूप से मीठे पेय से बनाएं दूरी
कनाडा के सेंट माइकल हॉस्पिटल और टोरंटो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 155 अध्ययनों के नतीजों को संकलित कर उनकी समीक्षा की और पता लगाया कि फ्रक्टोज शर्करा वाले विभिन्न खाद्य पदार्थ मधुमेह और स्वस्थ्य रोगियों के रक्त शर्करा के स्तर को किस तरह से प्रभावित करते हैं। अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि कृत्रिम रूप से मीठे पेय लोगों को अन्य शर्करा वाले खाद्य पदार्थों की तुलना में टाइप 2 मधुमेह के खतरे को बढ़ा सकते हैं। अतिरिक्त फ्रक्टोज के साथ ज्यादा ऊर्जा देने वाले और कम पोषक तत्वों से तैयार पेय रक्त शर्करा के स्तर को हानिकारक रूप से बढ़ा देते हैं।
शहद, नेचुरल फ्रूट जूस से खतरा नहीं
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि जिन खाद्य और पेय पदार्थों में प्राकृतिक रूप से फ्रक्टोज मौजूद थे, उनमें कोई जोखिम नहीं मिला जैसे फल, सब्जियां, प्राकृतिक फलों के रस और शहद। जबकि मीठे पेय में जब अलग से फ्रक्टोज डालते हैं तो ये खून में पहुंचकर तेजी से रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा देते हैं। अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. जॉन सिवेनपाइपर ने कहा, अध्ययन नतीजों से मधुमेह की रोकथाम और प्रबंधन में फ्रक्टोज के महत्व को समझ सकते हैं। इसके लिए अभी और बड़े स्तर पर अध्ययन की जरूरत है। उन्होंने आगे कहा, ‘जब तक अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती है, तब तक सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों को पता होना चाहिए कि रक्त ग्लूकोज पर फ्रक्टोज शर्करा के हानिकारक प्रभाव ऊर्जा और खाद्य स्रोत के बीच होते हैं।
बेकरी की चीजें खाने से बचें
इससे पहले यह स्पष्ट नहीं था कि कौन सी मीठी चीजें खाई जा सकती हैं और कौन सी नहीं। लोग सोचते थे कि जिस भी चीजों में मीठा हो, उसे खाने से परहेज करना चाहिए। नए अध्ययन में इसे और स्पष्ट करते हुए यह समझाया गया है कि कोल्ड ड्रिंक, नाश्ते के लिए खाने वाली डिब्बाबंद चीजें, बेकरी उत्पाद, मीठे पकवान, इन सभी चीजों में अलग से चीनी डाली जाती है, इसलिए ये ज्यादा नुकसानदायक हैं।
अतिरिक्त कैलोरी भी घातक
शोधकर्ताओं की टीम ने अध्ययन में पाया कि फ्रक्टोज शर्करा वाले अधिकांश खाद्य पदार्थों का तब तक रक्त ग्लूकोज के स्तर पर हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है, जब तक कि अतिरिक्त कैलोरी नहीं देते हैं। मधुमेह के रोगियों में फलों रस और फल रक्त ग्लूकोज और इंसुलिन के नियंत्रण पर भी फायदेमंद असर डाल सकता है। लेकिन जिन खाद्य पदार्थों में पोषक तत्व कम होते हैं और ऊर्जा ज्यादा देते हैं, वो हानिकारक हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि फल की उच्च फाइबर सामग्री रक्त ग्लूकोज के स्तर में सुधार में मदद कर सकती है, क्योंकि यह शर्करा को धीरे-धीरे जारी करता है।
Thursday, September 27, 2018
र्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम
ह एक नया सौदा था क्योंकि विमानों की क़ीमत, संख्या और शर्तें बदल गईं
थी. अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और प्रशांत भूषण का आरोप है कि नरेंद्र मोदी
ने नियमों का पालन नहीं किया.
सवाल ये है कि अगर यह नया ऑर्डर था तो नियमों के मुताबिक टेंडर क्यों जारी नहीं किए गए? यह भी पूछा जा रहा है कि इस फ़ैसले में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यूरिटी की क्या भूमिका थी? अगर नहीं थी, तो क्यों नहीं थी?
तथ्य यह है कि डासो एविएशन के साथ सौदे की घोषणा होने के क़रीब एक साल बाद कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यूरिटी ने इसे अपनी औपचारिक मंज़ूरी दी.
विमान की क़ीमत को लेकर सरकार संसद में जानकारी देने से कतराती रही है. सरकार ने विमान की कीमत बताने से यह कहते हुए इनकार किया कि यह सुरक्षा और गोपनीयता का मामला है. आरोप लगाने वाले बीजेपी से जुड़े रहे दोनों पूर्व कैबिनेट मंत्रियों का कहना है कि नियमों के मुताबिक, गोपनीयता सिर्फ़ विमान की तकनीकी जानकारी के बारे में बरती जाती है, कीमत के बारे में नहीं.
अरुण शौरी का कहना है कि लोकसभा में एक सवाल के जवाब में, रक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष भामरे ने 36 विमानों वाला सौदा होने से पहले बताया था कि एक विमान की कीमत 670 करोड़ रुपए के करीब होगी. अरुण शौरी पूछ रहे हैं कि हर विमान का दाम लगभग एक हज़ार करोड़ रुपए बढ़ गया है, अब एक विमान की कीमत 1600 करोड़ रुपए के क़रीब है.
क्या सरकार की ज़िम्मेदारी देश को यह बताना नहीं है कि ख़ज़ाने से लगभग 36 हज़ार करोड़ रुपए ज़्यादा क्यों ख़र्च हो रहे हैं? सरकार के मंत्रियों ने बचाव में कहा है कि विमान में बहुत सारे साज़ो-सामान और हथियार अलग से लगाए गए हैं इसलिए क़ीमत बढ़ी है.
संसद में दी गई जानकारी के आधार पर लोग आरोप लगा रहे हैं कि जो पिछला सौदा हुआ था उसमें सभी अतिरिक्त साज़ो-सामान और हथियारों की भी क़ीमत में शामिल थी. सरकार को बताना चाहिए कि क़ीमत का सच क्या है?
जिस दिन नरेंद्र मोदी ने पेरिस में विमान ख़रीद के समझौते पर हस्ताक्षर किए, वह तारीख़ थी 10 अप्रैल 2015. 25 मार्च 2015 को रिलायंस ने रक्षा क्षेत्र की एक कंपनी बनाई जिसे सिर्फ़ 15 दिन बाद लगभग 30 हज़ार करोड़ का ठेका मिल गया.
एक ऐसी कंपनी जिसने रक्षा उपकरण बनाने के क्षेत्र में कोई काम नहीं किया है, दिल्ली मेट्रो हो या टेलीकॉम का बिज़नेस, कंपनी के ट्रैक रिकॉर्ड पर लगातार सवाल उठते रहे हैं, अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी का ज़िक्र भारी क़र्ज़ की वजह से भी होता रहा है. ऐसे में फ्रांसीसी कंपनी अपनी मर्ज़ी से ऐसा पार्टनर क्यों चुनेगी यह एक पहेली है.
सौदे के समय फ्रांस के राष्ट्रपति रहे फ्रांस्वा ओलांद ने एक इंटरव्यू में कहा कि 'रिलायंस के नाम की पेशकश भारत की ओर से हुई थी, उनके सामने कोई और विकल्प नहीं था'. सफ़ाई में सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि यह 'राहुल-ओलांद की जुगलबंदी' है, एक 'साज़िश' है.
मोदी सरकार के मंत्रियों का कहना है कि इसमें सरकार का कोई रोल नहीं है, लेकिन क्या उसे 'क्रोनी कैपिटलिज़्म' के गंभीर आरोप पर खुलकर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं करनी चाहिए?
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा है कि यह 'परसेप्शन' की लड़ाई है जिसमें कांग्रेस झूठ बोल रही है यानी जितने सवाल पूछे जा रहे हैं उनका जवाब देने की कोई ज़रूरत नहीं है, सिर्फ़ ये परसेप्शन बनाने की ज़रूरत है कि सरकार पाक-साफ़ है या कांग्रेस ज़्यादा गंदी है.
राहुल गांधी ने कहा है कि "मोदी ने देश के युवाओं और वायु सेना से तीस हज़ार करोड़ रुपए छीनकर अनिल अंबानी को दे दिए हैं." यह ऐसा आरोप है जिसे अब तक मौजूद जानकारी से साबित करना मुमकिन नहीं है लेकिन वे भी परसेप्शन की लड़ाई जीतने में लगे हुए हैं.
भारत में शायद ही कोई बड़ा रक्षा सौदा हुआ हो और उसमें घोटाले, दलाली और रिश्वतख़ोरी के आरोप न लगे हों लेकिन किसी भी मामले में आरोप साबित नहीं होते, सवालों के जवाब नहीं मिलते.
रफ़ाल मामले में भी क्या ऐसा ही होगा? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के जागरूक नागरिकों को टीवी पर 'तू चोर', 'तेरा बाप चोर' वाला ड्रामा देखकर संतोष करना होगा या परसेप्शन की लड़ाई में कुछ तथ्य और तर्क भी सामने आएँगे?
क्या पता, देखते जाइए!
सवाल ये है कि अगर यह नया ऑर्डर था तो नियमों के मुताबिक टेंडर क्यों जारी नहीं किए गए? यह भी पूछा जा रहा है कि इस फ़ैसले में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यूरिटी की क्या भूमिका थी? अगर नहीं थी, तो क्यों नहीं थी?
तथ्य यह है कि डासो एविएशन के साथ सौदे की घोषणा होने के क़रीब एक साल बाद कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यूरिटी ने इसे अपनी औपचारिक मंज़ूरी दी.
विमान की क़ीमत को लेकर सरकार संसद में जानकारी देने से कतराती रही है. सरकार ने विमान की कीमत बताने से यह कहते हुए इनकार किया कि यह सुरक्षा और गोपनीयता का मामला है. आरोप लगाने वाले बीजेपी से जुड़े रहे दोनों पूर्व कैबिनेट मंत्रियों का कहना है कि नियमों के मुताबिक, गोपनीयता सिर्फ़ विमान की तकनीकी जानकारी के बारे में बरती जाती है, कीमत के बारे में नहीं.
अरुण शौरी का कहना है कि लोकसभा में एक सवाल के जवाब में, रक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष भामरे ने 36 विमानों वाला सौदा होने से पहले बताया था कि एक विमान की कीमत 670 करोड़ रुपए के करीब होगी. अरुण शौरी पूछ रहे हैं कि हर विमान का दाम लगभग एक हज़ार करोड़ रुपए बढ़ गया है, अब एक विमान की कीमत 1600 करोड़ रुपए के क़रीब है.
क्या सरकार की ज़िम्मेदारी देश को यह बताना नहीं है कि ख़ज़ाने से लगभग 36 हज़ार करोड़ रुपए ज़्यादा क्यों ख़र्च हो रहे हैं? सरकार के मंत्रियों ने बचाव में कहा है कि विमान में बहुत सारे साज़ो-सामान और हथियार अलग से लगाए गए हैं इसलिए क़ीमत बढ़ी है.
संसद में दी गई जानकारी के आधार पर लोग आरोप लगा रहे हैं कि जो पिछला सौदा हुआ था उसमें सभी अतिरिक्त साज़ो-सामान और हथियारों की भी क़ीमत में शामिल थी. सरकार को बताना चाहिए कि क़ीमत का सच क्या है?
जिस दिन नरेंद्र मोदी ने पेरिस में विमान ख़रीद के समझौते पर हस्ताक्षर किए, वह तारीख़ थी 10 अप्रैल 2015. 25 मार्च 2015 को रिलायंस ने रक्षा क्षेत्र की एक कंपनी बनाई जिसे सिर्फ़ 15 दिन बाद लगभग 30 हज़ार करोड़ का ठेका मिल गया.
एक ऐसी कंपनी जिसने रक्षा उपकरण बनाने के क्षेत्र में कोई काम नहीं किया है, दिल्ली मेट्रो हो या टेलीकॉम का बिज़नेस, कंपनी के ट्रैक रिकॉर्ड पर लगातार सवाल उठते रहे हैं, अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी का ज़िक्र भारी क़र्ज़ की वजह से भी होता रहा है. ऐसे में फ्रांसीसी कंपनी अपनी मर्ज़ी से ऐसा पार्टनर क्यों चुनेगी यह एक पहेली है.
सौदे के समय फ्रांस के राष्ट्रपति रहे फ्रांस्वा ओलांद ने एक इंटरव्यू में कहा कि 'रिलायंस के नाम की पेशकश भारत की ओर से हुई थी, उनके सामने कोई और विकल्प नहीं था'. सफ़ाई में सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि यह 'राहुल-ओलांद की जुगलबंदी' है, एक 'साज़िश' है.
मोदी सरकार के मंत्रियों का कहना है कि इसमें सरकार का कोई रोल नहीं है, लेकिन क्या उसे 'क्रोनी कैपिटलिज़्म' के गंभीर आरोप पर खुलकर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं करनी चाहिए?
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा है कि यह 'परसेप्शन' की लड़ाई है जिसमें कांग्रेस झूठ बोल रही है यानी जितने सवाल पूछे जा रहे हैं उनका जवाब देने की कोई ज़रूरत नहीं है, सिर्फ़ ये परसेप्शन बनाने की ज़रूरत है कि सरकार पाक-साफ़ है या कांग्रेस ज़्यादा गंदी है.
राहुल गांधी ने कहा है कि "मोदी ने देश के युवाओं और वायु सेना से तीस हज़ार करोड़ रुपए छीनकर अनिल अंबानी को दे दिए हैं." यह ऐसा आरोप है जिसे अब तक मौजूद जानकारी से साबित करना मुमकिन नहीं है लेकिन वे भी परसेप्शन की लड़ाई जीतने में लगे हुए हैं.
भारत में शायद ही कोई बड़ा रक्षा सौदा हुआ हो और उसमें घोटाले, दलाली और रिश्वतख़ोरी के आरोप न लगे हों लेकिन किसी भी मामले में आरोप साबित नहीं होते, सवालों के जवाब नहीं मिलते.
रफ़ाल मामले में भी क्या ऐसा ही होगा? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के जागरूक नागरिकों को टीवी पर 'तू चोर', 'तेरा बाप चोर' वाला ड्रामा देखकर संतोष करना होगा या परसेप्शन की लड़ाई में कुछ तथ्य और तर्क भी सामने आएँगे?
क्या पता, देखते जाइए!
Monday, September 17, 2018
水压力:看待中国水危机的另一视角
最近,彭朝思和萨拉·罗杰斯分别从不同角度对中国水资源短缺状况和应对措施进行了分析并进行了论辩。争议的焦点在于人均水资源量这个指标的价值以及华北地区水资源的实际状况。我们希望我们的研究能够为这一争论提供另一个视角。
我们对2001年至2015年间的中国水压力()发展变化进行了追踪,揭示出水压力在全国范围内的空间差异性。我们发现包括“三条红线”的最严格水资源管理制度的建立,有助于减缓甚至扭转水压力的加剧趋势。
由于中国有超过三分之一的土地面临高或极高的水资源压力,中国正努力将日益增长的淡水需求与可用的可再生水资源供应相匹配。政府充分意识到水资源压力可能造成的威胁——经济停滞,水资源依赖型产业的消亡以及资源引起的冲突。
2012年,中国国务院出台了“国务院关于实施最严格的水资源管理制度的意见”,以应对日益严峻的水资源挑战。这份通常被称为“三条红线”的文件的主要目标包括:1)到2030年全国用水总量控制在 亿立方米以内;2)到2030年用水效率达到或接近世界先进水平,体现为万元工业增加值用水量和农田灌溉水有效利用系数两个指标;3)到2030年主要污染物入河湖总量控制在水功能区纳污能力范围之内。在中央政府发布文件之后,地方政府相应制定了自己更详细的目标。
这“三条红线”是否改善了中国的用水安全? 世界资源研究所利用三年(2001年,2010年和2015年)的用水数据对全国基准水压力进行了分析。基准水压力被定义为年度总用水量(生活,工业和农业)占年度可用地表水总量的百分比。数值越高,用户之间的竞争越激烈——数值高于40%被认为是“高水资源压力”,数值高于80%为“极高”。
我们对2001年至2015年间的中国水压力()发展变化进行了追踪,揭示出水压力在全国范围内的空间差异性。我们发现包括“三条红线”的最严格水资源管理制度的建立,有助于减缓甚至扭转水压力的加剧趋势。
由于中国有超过三分之一的土地面临高或极高的水资源压力,中国正努力将日益增长的淡水需求与可用的可再生水资源供应相匹配。政府充分意识到水资源压力可能造成的威胁——经济停滞,水资源依赖型产业的消亡以及资源引起的冲突。
2012年,中国国务院出台了“国务院关于实施最严格的水资源管理制度的意见”,以应对日益严峻的水资源挑战。这份通常被称为“三条红线”的文件的主要目标包括:1)到2030年全国用水总量控制在 亿立方米以内;2)到2030年用水效率达到或接近世界先进水平,体现为万元工业增加值用水量和农田灌溉水有效利用系数两个指标;3)到2030年主要污染物入河湖总量控制在水功能区纳污能力范围之内。在中央政府发布文件之后,地方政府相应制定了自己更详细的目标。
这“三条红线”是否改善了中国的用水安全? 世界资源研究所利用三年(2001年,2010年和2015年)的用水数据对全国基准水压力进行了分析。基准水压力被定义为年度总用水量(生活,工业和农业)占年度可用地表水总量的百分比。数值越高,用户之间的竞争越激烈——数值高于40%被认为是“高水资源压力”,数值高于80%为“极高”。
- 2001年到2015年,水资源压力的整体模式一直保持一致:中国北方比中国南方的缺水压力更大。与2010年相比,随着“三条红线”的实施,2015年中国面临高水压力地区的总面积几乎没有发生变化。
- 水资源压力加剧的程度在减缓:尽管因为各部门的用水需求增加导致中国的水资源压力在2001年至2010年期间加剧,但2015年的水资源压力地图显示,这一情况在许多地区开始有所改善。在2010-2015年期间,高水资源压力的地区的面积增加减缓。这五年期间水资源压力加剧的地区总面积仅为前十年(2001-2010年)的35%。
- 更多地区的水资源压力得到改善: 2010-2015年水资源压力得到缓和的地区总面积是2010-2010年的间总面积的10倍。这些积极的变化在地方层面有所显现。例如,与2010年相比,2015年中国四川省攀枝花市的工业用水量下降了31%。这一变化是由攀枝花市政府实施的激励措施所推动的,该措施旨在确保“2015年万元工业增加值用水量比2010年下降30%”。在2013年,攀枝花有37家工业企业被纳入了四川省“百户企业节水行动推进方案”。该方案是针对该省用水量超过30万立方米/年,总用水量占全省工业用水总量近70%的共计546家公司制定的,以提高用水效率。2013年,这37家公司的用水量比上年下降22%,重复利用率为85.40%。该例子显示“三条红线”和地方政府的政策与激励措施正在起作用。
但对处于争议焦点的华北地区而言,情况仍不容乐观。华北平原和京津冀地区在2001-2015年期间始终处于极高水压力下。分行业的数据显示农业灌溉用水量在华北平原的大部分地区不断下降,例如北京市的农业灌溉用水量在2001年-2010年期间下降了一般以上。天津南部地区所在的流域,其境内农业灌溉用水在2001-2015年期间持续下降。但另一方面,该区域的工业用水一直保持上升趋势。
这些分析清晰表明在中国更严格的水资源管理带来的积极影响已经开始显现。尽管各地区之间存在差异——一些地区水压力加剧,但自“三项红线”发布以来,包括按行业划分的整体情况有所改善。。
由于分析仅基于两个数据点(2010年和2015年),因此尚不清楚这是一个趋势还是偶然现象。如果这种趋势随着时间推移而得到证实,那么它将表明,即使是水资源相对有压力的国家,在保持经济繁荣的同时,也可以通过有效的公共政策和配套的激励措施来改善状况。 注:本分析使用了世界资源研究所的“水道全球水风险地图集”的方法和美国国家航空航天局的全球陆面数据同化系统( )中的水文数据,以及中国政府发布的详细行业用水数据来评估可再生地表水的多年平均值。需要指出的是,如同他许多国家一样,这些自报的用水数据没有经过第三方的独立验证。因此,我们只能依靠政府报告数据的准确性,而无法与其他来源进行核对。
Thursday, August 30, 2018
नज़रबंद रहेंगे गिरफ़्तार 'मानवाधिकार कार्यकर्ता'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मंगलवार को गिरफ़्तार किए गए पाँच
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को फ़िलहाल रिमांड पर नहीं भेजा जाएगा. कोर्ट ने
कहा है कि अगली सुनवाई होने तक इन सभी लोगों को घर में नज़रबंद रखा जाए.
ये हैं वामपंथी विचारक और कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस.
इतिहासकार रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, देवकी जैन और माया दारुवाला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है. इस मामले की अगली सुनवाई छह सितंबर को होगी.
इन लोगों की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "जस्टिस वाईएस चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा कि ये बहुत दुर्भाग्य की बात है. ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. जो दूसरों के अधिकार की बचाने की कोशिश कर रहे हैं, उनका मुँह बंद करना चाहते हैं. ये लोकतंत्र के लिए बहुत ख़तरनाक है."
वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर के मुताबिक़ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विरोध की आवाज़ लोकतंत्र के लिए सेफ़्टी वॉल्व है और अगर आप सेफ्टी वाल्व को अनुमति नहीं देंगे तो प्रेशर कुकर फट जाएगा.
दूसरी ओर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में मीडिया रिपोर्ट्स पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा है कि आयोग को ऐसा लगता है कि इस मामले में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. इस कारण ये मानवाधिकार उल्लंघन का मामला हो सकता है.
एनएचआरसी ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी करके चार सप्ताह के अंदर रिपोर्ट देने को कहा है.
पुणे पुलिस ने मंगलवार को पाँच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया था. जबकि अदालत के आदेश की वजह से इनमें से एक को घर में नज़रबंद कर दिया गया.
पुलिस अधिकारी गिरफ़्तार लोगों को 'माओवादी हिंसा का दिमाग़' बता रहे हैं.
पुलिस का ये भी कहना है कि भीमा-कोरेगाँव में हुई हिंसा के लिए भी इन लोगों की भूमिका की जाँच की जा रही है.
ये कार्रवाई आतंक निरोधी कानून और भारतीय दंड संहिता की धारा 1
भारतीय जनता पार्टी ने गिरफ़्तारी के फ़ैसला का बचाव किया है. पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान की आलोचना की.
उन्होंने कहा, "ये दुःख का विषय है कि राहुल गांधी जी नक्सलियों को मानवाधिकार कार्यकर्ता मानते हैं, जो लोग दूसरों का खून बहाते हैं वो कैसे मानवाधिकार कार्यकर्ता हो सकते हैं यह सोचने का विषय है. जब नक्सलियों को आप गिरफ्तार करते हैं, तो वो नक्सली हैं और जब हम गिरफ्तार करते हैं तो वे मानवाधिकार के लिए काम करने वाले हैं."
बीजेपी प्रवक्ता ने वरवर राव और वरनॉन गोंज़ाल्विस का उदाहरण देते हुए कहा कि इन दोनों की गिरफ़्तारी कांग्रेस के समय में हुई थी और उन्हें जेल भी भेजा गया था.
और 34 के तहत की गई.
इस कार्रवाई के ख़िलाफ़ अदालत में याचिका दायर की गई और दिल्ली में भी विरोध-प्रदर्शन हुआ.
दिल्ली में महाराष्ट्र सदन के बाहर इन गिरफ़्तारियों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन होना था, लेकिन उससे पहले ही पुलिस ने सदन के बाहर बैरिकेड खड़े कर दिए थे.
पास खड़ी बसों में सुरक्षाबल के जवान बैठे थे जिन्होंने पत्रकारों तक को महाराष्ट्र सदन से दूर रखा. जिस तरह की पुलिस की तैयारियां थीं उस तादाद में प्रदर्शनकारी वहां नहीं पहुंचे.
जितने भी प्रदर्शनकारी सदन के बाहर तक पहुंचे, उन्होंने पुणे पुलिस की कार्रवाई के विरोध में नारे लगाए. कुछ प्रदर्शनकारी जहां वाम संगठन से जुड़े थे, सदन के बाहर आम लोग भी पहुंचे.
कुछ प्रदर्शनकारी नरेंद्र मोदी को ट्रंप कहकर बुला रहे थे. उनके हाथ में कई तरह के बैनर थे. एक पर लिखा था "ये लोगों को परेशान करने जैसा है." एक अन्य बैनर पर लिखा था - "ये आपातकाल है".
प्रदर्शन मे पहुंची अपर्णा ने कहा, ये सरकार अपनी सोच पूरे देश पर थोपना चाहती है ताकि सांप्रदायिक ताकतों का बचाव किया जा सके. हम चाहते हैं कि ऐसी नीतियों का सामना लोकतंत्र से किया जाए और गिरफ़्तार लोगों को तुरंत रिहा किया जाए.
रिटायर्ड वैज्ञानिक गौहर रज़ा ने कहा, "मैं इन झूठे मामलों का विरोध करता हूं. ये प्रदर्शन है आवाज़ दबाने के खिलाफ़. ये प्रदर्शन है उन लोगों के लिए जो आम जनता के लिए, दलितों के लिए आवाज़ उठाते रहे हैं. ये दमन 2019 तक चलता रहेगा."
रज़ा ने कहा, "जिन लोगों ने इमरजेंसी देखी है या स्वतंत्रता संग्राम के बारे में पढ़ा है वो जानते हैं कि डर क्या होता है. और कैसे सत्ता में बैठे लोग कोशिश करते हैं कि डर से लोगों को दबा दिया जाए, उस आवाज़ को जो उनसे सवाल पूछ सकती है, या उनके वायदे उन्हें याद दिला सकती है."
पिछले साल 31 दिसंबर को यलगार परिषद का आयोजन किया गया था. इस परिषद में माओवादियों की कथित भूमिका की जांच में लगी पुलिस ने कई राज्यों में सात कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी की और पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया.
इस परिषद का आयोजन पुणे में 31 दिसंबर 2017 को किया गया था और अगले दिन 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव में दलितों को निशाना बनाकर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी. महाराष्ट्र में पुणे के क़रीब भीमा कोरेगांव गांव में दलित और अगड़ी जाति के मराठाओं के बीच टकराव हुआ था.
भीमा कोरेगांव में दलितों पर हुए कथित हमले के बाद महाराष्ट्र के कई इलाकों में विरोध-प्रदर्शन किए गए. दलित समुदाय भीमा कोरेगांव में हर साल बड़ी संख्या में जुटकर उन दलि
ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश सेना में शामिल दलितों (महार) ने मराठों को नहीं बल्कि ब्राह्मणों (पेशवा) को हराया था. बाबा साहेब आंबेडकर खुद 1927 में इन सैनिकों को श्रद्धांजलि देने वहां गए थे.
मंगलवार सबेरे छापेमारी के बाद जो लोग गिरफ़्तार किए गए, उनमें हैदराबाद से वरवर राव, मुंबई में वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फ़रेरा, फ़रीदाबाद में सुधा भारद्वाज और नई दिल्ली में गौतम नवलखा शामिल हैं. रांची में स्टैन स्वामी और गोवा में आनंद तेलतम्बदे के घर पर भी छापा मारा गया.
तों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने 1817 में पेशवा की सेना के ख़िलाफ़ लड़ते हुए अपने प्राण गंवाए थे.
सुधा भारद्वाज एक वकील और ऐक्टिविस्ट हैं. वो दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में गेस्ट फ़ैकल्टी के तौर पर पढ़ाती हैं. सुधा ट्रेड यूनियन में भी शामिल हैं और मज़दूरों के मुद्दों पर काम करती हैं. उन्होंने आदिवासी अधिकार और भूमि अधिग्रहण पर एक सेमिनार में हिस्सा लिया था. वो दिल्ली न्यायिक अकादमी का भी एक हिस्सा हैं.
वरवर राव
वरवर पेंड्याला राव वामपंथ की तरफ़ झुकाव रखने वाले कवि और लेखक हैं. वो 'रेवोल्यूशनरी राइटर्स असोसिएशन' के संस्थापक भी हैं. वरवर वारंगल ज़िले के चिन्ना पेंड्याला गांव से ताल्लुक रखते हैं. उन्हें आपातकाल के दौरान भी साज़िश के कई आरोपों में गिरफ़्तार किया गया था, बाद में उन्हें आरोपमुक्त करके रिहा कर दिया था.
वरवर की रामनगर और सिकंदराबाद षड्यंत्र जैसे 20 से ज़्यादा मामलों में जांच की गई थी. उन्होंनें राज्य में माओवादी हिंसा ख़त्म करने के लिए चंद्रबाबू सरकार और माओवादी नेता गुम्माडी विट्ठल राव ने मिलकर मध्यस्थता की थी. जब वाईएस राजशेखर रेड्डी सरकार ने माओवादियों ने बातचीत की, तब भी उन्होंने मध्यस्थ की भूमिका भी निभाई.
ये हैं वामपंथी विचारक और कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस.
इतिहासकार रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, देवकी जैन और माया दारुवाला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है. इस मामले की अगली सुनवाई छह सितंबर को होगी.
इन लोगों की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "जस्टिस वाईएस चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा कि ये बहुत दुर्भाग्य की बात है. ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. जो दूसरों के अधिकार की बचाने की कोशिश कर रहे हैं, उनका मुँह बंद करना चाहते हैं. ये लोकतंत्र के लिए बहुत ख़तरनाक है."
वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर के मुताबिक़ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विरोध की आवाज़ लोकतंत्र के लिए सेफ़्टी वॉल्व है और अगर आप सेफ्टी वाल्व को अनुमति नहीं देंगे तो प्रेशर कुकर फट जाएगा.
दूसरी ओर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में मीडिया रिपोर्ट्स पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा है कि आयोग को ऐसा लगता है कि इस मामले में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. इस कारण ये मानवाधिकार उल्लंघन का मामला हो सकता है.
एनएचआरसी ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी करके चार सप्ताह के अंदर रिपोर्ट देने को कहा है.
पुणे पुलिस ने मंगलवार को पाँच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया था. जबकि अदालत के आदेश की वजह से इनमें से एक को घर में नज़रबंद कर दिया गया.
पुलिस अधिकारी गिरफ़्तार लोगों को 'माओवादी हिंसा का दिमाग़' बता रहे हैं.
पुलिस का ये भी कहना है कि भीमा-कोरेगाँव में हुई हिंसा के लिए भी इन लोगों की भूमिका की जाँच की जा रही है.
ये कार्रवाई आतंक निरोधी कानून और भारतीय दंड संहिता की धारा 1
भारतीय जनता पार्टी ने गिरफ़्तारी के फ़ैसला का बचाव किया है. पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान की आलोचना की.
उन्होंने कहा, "ये दुःख का विषय है कि राहुल गांधी जी नक्सलियों को मानवाधिकार कार्यकर्ता मानते हैं, जो लोग दूसरों का खून बहाते हैं वो कैसे मानवाधिकार कार्यकर्ता हो सकते हैं यह सोचने का विषय है. जब नक्सलियों को आप गिरफ्तार करते हैं, तो वो नक्सली हैं और जब हम गिरफ्तार करते हैं तो वे मानवाधिकार के लिए काम करने वाले हैं."
बीजेपी प्रवक्ता ने वरवर राव और वरनॉन गोंज़ाल्विस का उदाहरण देते हुए कहा कि इन दोनों की गिरफ़्तारी कांग्रेस के समय में हुई थी और उन्हें जेल भी भेजा गया था.
और 34 के तहत की गई.
इस कार्रवाई के ख़िलाफ़ अदालत में याचिका दायर की गई और दिल्ली में भी विरोध-प्रदर्शन हुआ.
दिल्ली में महाराष्ट्र सदन के बाहर इन गिरफ़्तारियों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन होना था, लेकिन उससे पहले ही पुलिस ने सदन के बाहर बैरिकेड खड़े कर दिए थे.
पास खड़ी बसों में सुरक्षाबल के जवान बैठे थे जिन्होंने पत्रकारों तक को महाराष्ट्र सदन से दूर रखा. जिस तरह की पुलिस की तैयारियां थीं उस तादाद में प्रदर्शनकारी वहां नहीं पहुंचे.
जितने भी प्रदर्शनकारी सदन के बाहर तक पहुंचे, उन्होंने पुणे पुलिस की कार्रवाई के विरोध में नारे लगाए. कुछ प्रदर्शनकारी जहां वाम संगठन से जुड़े थे, सदन के बाहर आम लोग भी पहुंचे.
कुछ प्रदर्शनकारी नरेंद्र मोदी को ट्रंप कहकर बुला रहे थे. उनके हाथ में कई तरह के बैनर थे. एक पर लिखा था "ये लोगों को परेशान करने जैसा है." एक अन्य बैनर पर लिखा था - "ये आपातकाल है".
प्रदर्शन मे पहुंची अपर्णा ने कहा, ये सरकार अपनी सोच पूरे देश पर थोपना चाहती है ताकि सांप्रदायिक ताकतों का बचाव किया जा सके. हम चाहते हैं कि ऐसी नीतियों का सामना लोकतंत्र से किया जाए और गिरफ़्तार लोगों को तुरंत रिहा किया जाए.
रिटायर्ड वैज्ञानिक गौहर रज़ा ने कहा, "मैं इन झूठे मामलों का विरोध करता हूं. ये प्रदर्शन है आवाज़ दबाने के खिलाफ़. ये प्रदर्शन है उन लोगों के लिए जो आम जनता के लिए, दलितों के लिए आवाज़ उठाते रहे हैं. ये दमन 2019 तक चलता रहेगा."
रज़ा ने कहा, "जिन लोगों ने इमरजेंसी देखी है या स्वतंत्रता संग्राम के बारे में पढ़ा है वो जानते हैं कि डर क्या होता है. और कैसे सत्ता में बैठे लोग कोशिश करते हैं कि डर से लोगों को दबा दिया जाए, उस आवाज़ को जो उनसे सवाल पूछ सकती है, या उनके वायदे उन्हें याद दिला सकती है."
पिछले साल 31 दिसंबर को यलगार परिषद का आयोजन किया गया था. इस परिषद में माओवादियों की कथित भूमिका की जांच में लगी पुलिस ने कई राज्यों में सात कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी की और पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया.
इस परिषद का आयोजन पुणे में 31 दिसंबर 2017 को किया गया था और अगले दिन 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव में दलितों को निशाना बनाकर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी. महाराष्ट्र में पुणे के क़रीब भीमा कोरेगांव गांव में दलित और अगड़ी जाति के मराठाओं के बीच टकराव हुआ था.
भीमा कोरेगांव में दलितों पर हुए कथित हमले के बाद महाराष्ट्र के कई इलाकों में विरोध-प्रदर्शन किए गए. दलित समुदाय भीमा कोरेगांव में हर साल बड़ी संख्या में जुटकर उन दलि
ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश सेना में शामिल दलितों (महार) ने मराठों को नहीं बल्कि ब्राह्मणों (पेशवा) को हराया था. बाबा साहेब आंबेडकर खुद 1927 में इन सैनिकों को श्रद्धांजलि देने वहां गए थे.
मंगलवार सबेरे छापेमारी के बाद जो लोग गिरफ़्तार किए गए, उनमें हैदराबाद से वरवर राव, मुंबई में वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फ़रेरा, फ़रीदाबाद में सुधा भारद्वाज और नई दिल्ली में गौतम नवलखा शामिल हैं. रांची में स्टैन स्वामी और गोवा में आनंद तेलतम्बदे के घर पर भी छापा मारा गया.
तों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने 1817 में पेशवा की सेना के ख़िलाफ़ लड़ते हुए अपने प्राण गंवाए थे.
सुधा भारद्वाज एक वकील और ऐक्टिविस्ट हैं. वो दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में गेस्ट फ़ैकल्टी के तौर पर पढ़ाती हैं. सुधा ट्रेड यूनियन में भी शामिल हैं और मज़दूरों के मुद्दों पर काम करती हैं. उन्होंने आदिवासी अधिकार और भूमि अधिग्रहण पर एक सेमिनार में हिस्सा लिया था. वो दिल्ली न्यायिक अकादमी का भी एक हिस्सा हैं.
वरवर राव
वरवर पेंड्याला राव वामपंथ की तरफ़ झुकाव रखने वाले कवि और लेखक हैं. वो 'रेवोल्यूशनरी राइटर्स असोसिएशन' के संस्थापक भी हैं. वरवर वारंगल ज़िले के चिन्ना पेंड्याला गांव से ताल्लुक रखते हैं. उन्हें आपातकाल के दौरान भी साज़िश के कई आरोपों में गिरफ़्तार किया गया था, बाद में उन्हें आरोपमुक्त करके रिहा कर दिया था.
वरवर की रामनगर और सिकंदराबाद षड्यंत्र जैसे 20 से ज़्यादा मामलों में जांच की गई थी. उन्होंनें राज्य में माओवादी हिंसा ख़त्म करने के लिए चंद्रबाबू सरकार और माओवादी नेता गुम्माडी विट्ठल राव ने मिलकर मध्यस्थता की थी. जब वाईएस राजशेखर रेड्डी सरकार ने माओवादियों ने बातचीत की, तब भी उन्होंने मध्यस्थ की भूमिका भी निभाई.
Sunday, August 26, 2018
中国雾霾抑制措施“过于软弱”,无法预防一百万例过早死亡
中国风电行业去年增幅达到60%,超越欧盟成为全球最大的风电生产国。
全球风能理事会( )月初发布的报告显示,由于政府大力支持新风力发电场的建设,中国目前的装机容量已达到1.451亿千瓦,超越了欧盟的1.416亿千瓦。
“风电在能源行业转型的过程中率先冲锋。”全球风能理事会秘书长史蒂夫·索亚说。
“风能在价格、性能和可靠性等方面的竞争力正逐渐增强,并在非洲、亚洲和拉丁美洲都开辟了新的市场,这些地区都将成为未来十年市场的领导者。”他说。
当前,中国重工业的发展逐步减速,令人窒息的烟雾笼罩着城市的上空,整个国家正在陷入健康危机之中。因此,降低对煤炭的依赖成为中国政府追求发展清洁能源的主要原因。
2015年,全球风电新增装机容量超过6300万千瓦,与去年相比增长22%。其中,中国新增3050万千瓦,几乎占全球新增总量的一半。美国新增860万千瓦。与此同时,德国新增装机容量创历史新高,达到600万千瓦(其中230万千瓦位于海上),居欧盟之首。2015年末,德国的全球总容量达到4320万千瓦,累积增长17%,其他国家都无法与之相比。
在亚洲,印度新增260万千瓦,超越西班牙成为全球累积容量第四大国家,前三位分别为中国、美国和德国。日本、韩国和台湾的风能发电量也有所增加。
虽然风能在中国能源结构中的地位日益突出,但煤炭仍旧是中国电力生产最主要的原料。全球风能理事会( )月初发布的报告显示,由于政府大力支持新风力发电场的建设,中国目前的装机容量已达到1.451亿千瓦,超越了欧盟的1.416亿千瓦。
“风电在能源行业转型的过程中率先冲锋。”全球风能理事会秘书长史蒂夫·索亚说。
“风能在价格、性能和可靠性等方面的竞争力正逐渐增强,并在非洲、亚洲和拉丁美洲都开辟了新的市场,这些地区都将成为未来十年市场的领导者。”他说。
当前,中国重工业的发展逐步减速,令人窒息的烟雾笼罩着城市的上空,整个国家正在陷入健康危机之中。因此,降低对煤炭的依赖成为中国政府追求发展清洁能源的主要原因。
2015年,全球风电新增装机容量超过6300万千瓦,与去年相比增长22%。其中,中国新增3050万千瓦,几乎占全球新增总量的一半。美国新增860万千瓦。与此同时,德国新增装机容量创历史新高,达到600万千瓦(其中230万千瓦位于海上),居欧盟之首。2015年末,德国的全球总容量达到4320万千瓦,累积增长17%,其他国家都无法与之相比。
在亚洲,印度新增260万千瓦,超越西班牙成为全球累积容量第四大国家,前三位分别为中国、美国和德国。日本、韩国和台湾的风能发电量也有所增加。
此外,尽管中国的风电装机容量居世界首位,但由于存在煤电优先上网、新基础设施建设延误等电网问题,这些装机量很多都无法利用。
据新华社报道,由于新设备与旧式电网的连接存在问题,中国国家能源局可能会叫停内蒙古、新疆以及吉林地区风力发电场的建设。除非其他申明,本网站及其内容受知识共享组织的“署名-非商业性使用-禁止演绎"2.0 英国:英格兰和威尔士协议和 2.5 中国大陆协议的保护。
Wednesday, August 15, 2018
英国学者:电子烟“对人体安全”的说法可能有误
电子烟(又称电子雾化器)是否真的比传统香烟“健康”?如果你问英国卫生部门,它们会回应说“是”。但当地一家大学最新的研究结果显示,答案并不是这么简单。
英格兰公共卫生署(Public Health England)今年二月曾发表报指,有证据显示电子烟对健康的损害比一般香烟少。它更建议吸烟人士应利用电子烟,协助他们戒烟。但是,英国伯明翰大学( )教授蒂克特( 最新在医学双月刊《胸腔》(T )发表的研究报告指,电子烟令人体内重要的免疫细胞失去功用,并警告早前电子烟“对人体安全”的说
此前有关电子烟的研究大都集中在电子烟的化学成份,蒂克特的项目首次集中研究电子烟对吸烟者身体影响。
研究员从八名没有吸烟习惯的人抽取肺样本,在实验室内测试电子烟对这些样本的影响。他们发现,电子烟放出的烟雾令这些肺组织发炎,样本内的肺泡巨噬细胞也受烟雾影响减少活动。这种细胞负责清除人体内可能有害的尘粒、细菌和致敏原。
研究员指,实验中肺样本的反应,与一般吸烟者肺部和肺病长期患者的反应差不多。研究员同时强调,实验室内的模拟测试只进行了48小时,结果不能作准,他们必须进行更多研究,才能断定电子烟对人体的长期影响。
负责研究的蒂克特教授指出,如果只比较香烟与电子烟的化学成份,那么电子烟含有的致癌物的确要比传统香烟少。英格兰公共卫生署和英国国民保健署分别都指出电子烟对人体的伤害以传统香烟少,但他认为电子烟在长远来说可能仍然有害。
他认为,电子烟的致癌性的确比传统香烟少,但“如果一个人吸食电子烟长达二三十年,而这个习惯有可能导致慢性阻塞性肺病的话,那是我们需要知道的事情”。
他补充他不认为电子烟比一般香烟有害,但外界应对它抱有怀疑态度,确保它宣称对人体的影响与实际影响一致。
英格兰公共卫生署官员多克雷尔( )指出,电子烟并不是百分百安全,但它们对健康的损害明显比普通香烟少。
他说:“任何正考虑转抽电子烟的人,都应该立即行动。法可能有误。
Sunday, July 22, 2018
印度版“大气十条”恐难以服众
在过去几年中,有关印度空气污染危机的报道一直占据着新闻头条。首都德里的污染状况和公众健康成本在媒体报道中已成为“民族危机”。
不仅如此,科学家们还报告说,空气污染还会影响气候模式,其中包括能够给南亚地区带来赖以生存的重要降雨的季风。
当然,这个问题并不是印度所独有的。孟加拉国的首都达卡也面临着空气污染的威胁。巴基斯坦国内监测站数量不足则表明该国对危机的认识不足。
在印度,冬季来临之前焚烧秸秆产生的雾霾笼罩德里,空气污染也在此时达到峰值。不过污染问题会持续一整年,而且不止是德里,小城市里的污染问题甚至有可能更加严重。但是,由于数据收集量有限,而且媒体很少关注,使得这些省份的问题基本上都被忽视了。
清洁空气计划
在这种背景下,由印度环境、森林和气候变化部起草的“国家清洁空气计划”( )被寄予厚望。 该计划直到5月17日才开始征求公众意见。不幸的是,由于草案编制水平较差,在咨询独立专家和空气污染受害者之后,恐怕需要重新起草。尤其是在当下,世界卫生组织(WHO)声明称,2010-2016年全世界15个污染最严重的城市中有14个在印度,重新编制草案就更加重要。
在19页的“国家清洁空气计划草案”中有很大一部分是在质疑、轻视世界卫生组织等国际组织的研究成果。在空气污染问题上,内政部、中央污染控制委员会( )和国家污染控制委员会仍基本上持否定态度。
随着印度人呼吸系统疾病发病率越来越高,城市里的医生发现这类疾病的发病率,尤其是儿童和老人罹患此类疾病的几率与污染严重的地区之间有着直接的关系。因此,政府部门的上述否认缺乏可信度。
更令人惊讶的是,目前该部门的领导本人正是一位医生;他作为一名医务工作者的亲身经历,以及与同事之间的交流本应该能够说服他,让他明白空气污染问题并未被任何人夸大。
值得欣慰的是,环境部与印度医学研究委员会( )联合组建了一个团队,重点研究空气污染对健康的影响。但现在, 草案指出,该团队的报告将由环境和卫生部门进一步审查。虽然做好研究很重要,但不应以此作为推迟行动的借口。不幸的是, 草案给人的印象就是出于这样的目的。
该草案更加详细地探讨了监测和测量城市空气污染的方式,以及如何按比例对污染程度承担相应的责任。它还涵盖了全国空气质量指数()的最新发展。这些都是很有必要的,但到此为止是不够的。其实目前已经有很多关于污染程度和污染源的数据可以确保行动开展。
这是 草案失败的地方。它唯一建议立即采取的行动就是在路边种植更多的树木来吸收污染物。同样,这是有必要的,但远远不够。
执法不严
印度有许多控制空气污染的法律、规则和准则。问题在于这些法律法规的执行力度不够严格,远远未达到所需的程度。草案在实施问题上,唯一值得一提的一点就是指出,需要扩大和培训中央污染和控制委员会以及州污染控制委员会的干部队伍。
同样,这显然是必要的,但必然是一个长期的过程,缺乏应对空气污染问题所需要的迫切行动。即使是CPCB的42点行动计划也没有体现出紧迫感。
除此之外, 草案中关于实施的部分中大部分都是已有的措施,对于哪些措施有效、哪些无效,以及其背后的原因则几乎不加甄别。德里和首都地区的分级响应行动计划(gambling)就是一个例子。
虽然该计划是由非常专业的专家组主导,但他们在实施方面所作的尝试都面临着工厂主、房地产经纪人、运输商、汽车制造商、农民甚至中央和州政府各级部门的挑战和游说,最终达成的结果最多不过是部分实行。草案没有提到短期内如何改善这种情况。
政治意愿仍显不足
解决印度空气污染问题难度很大,特别是在恒河平原这个风速相对较小的大山谷,大气中的污染物难以扩散。可是其他一些国家的山谷,虽然小很多,但污染物都被清除了,特别是洛杉矶所在的南加利福尼亚山谷。理论上讲,同样的措施本该在印度也奏效,关键在于是否有落实措施的政治决心。
要求一个政府部门起草的草案讨论政治决心或许有点要求太高,但它一定可以讨论如何提高公民参与的积极性。
印度很多城市,特别是北部地区的城市的居民如今会一边谈论着严重的空气污染问题,一边仍会开着柴油跑车,去买家用的空气净化器。
德里也许是世界上唯一一个因为司机不守交规导致快速公交通道计划破产的城市。所以迫切需要采取行动打击此类行为。
同样亟待解决的是,官员和技术专家需认可空气污染的民间监测。在北京,当居民们将简易的污染监测应用程序下载到他们的智能手机上,并开始四处分享污染指数后,有关方面才加大了空气污染的防控力度。
在印度,同样的尝试刚一冒头便引起了部委和中央污染控制委员会的极大反对,他们的官员怀疑空气检测仪的准确性并称其未进行正确校准。
技术专家们忽略了一点,相比空气质量已严重危害人们的事实,特定污染物浓度的准确性没那么重要。当然,官员需要数据来处理污染物及其来源。但接受和认可,而不是质疑人们的诉求才能更有力地落实相关法规。
当然,这个问题并不是印度所独有的。孟加拉国的首都达卡也面临着空气污染的威胁。巴基斯坦国内监测站数量不足则表明该国对危机的认识不足。
在印度,冬季来临之前焚烧秸秆产生的雾霾笼罩德里,空气污染也在此时达到峰值。不过污染问题会持续一整年,而且不止是德里,小城市里的污染问题甚至有可能更加严重。但是,由于数据收集量有限,而且媒体很少关注,使得这些省份的问题基本上都被忽视了。
清洁空气计划
在这种背景下,由印度环境、森林和气候变化部起草的“国家清洁空气计划”( )被寄予厚望。 该计划直到5月17日才开始征求公众意见。不幸的是,由于草案编制水平较差,在咨询独立专家和空气污染受害者之后,恐怕需要重新起草。尤其是在当下,世界卫生组织(WHO)声明称,2010-2016年全世界15个污染最严重的城市中有14个在印度,重新编制草案就更加重要。
在19页的“国家清洁空气计划草案”中有很大一部分是在质疑、轻视世界卫生组织等国际组织的研究成果。在空气污染问题上,内政部、中央污染控制委员会( )和国家污染控制委员会仍基本上持否定态度。
随着印度人呼吸系统疾病发病率越来越高,城市里的医生发现这类疾病的发病率,尤其是儿童和老人罹患此类疾病的几率与污染严重的地区之间有着直接的关系。因此,政府部门的上述否认缺乏可信度。
更令人惊讶的是,目前该部门的领导本人正是一位医生;他作为一名医务工作者的亲身经历,以及与同事之间的交流本应该能够说服他,让他明白空气污染问题并未被任何人夸大。
值得欣慰的是,环境部与印度医学研究委员会( )联合组建了一个团队,重点研究空气污染对健康的影响。但现在, 草案指出,该团队的报告将由环境和卫生部门进一步审查。虽然做好研究很重要,但不应以此作为推迟行动的借口。不幸的是, 草案给人的印象就是出于这样的目的。
该草案更加详细地探讨了监测和测量城市空气污染的方式,以及如何按比例对污染程度承担相应的责任。它还涵盖了全国空气质量指数()的最新发展。这些都是很有必要的,但到此为止是不够的。其实目前已经有很多关于污染程度和污染源的数据可以确保行动开展。
这是 草案失败的地方。它唯一建议立即采取的行动就是在路边种植更多的树木来吸收污染物。同样,这是有必要的,但远远不够。
执法不严
印度有许多控制空气污染的法律、规则和准则。问题在于这些法律法规的执行力度不够严格,远远未达到所需的程度。草案在实施问题上,唯一值得一提的一点就是指出,需要扩大和培训中央污染和控制委员会以及州污染控制委员会的干部队伍。
同样,这显然是必要的,但必然是一个长期的过程,缺乏应对空气污染问题所需要的迫切行动。即使是CPCB的42点行动计划也没有体现出紧迫感。
除此之外, 草案中关于实施的部分中大部分都是已有的措施,对于哪些措施有效、哪些无效,以及其背后的原因则几乎不加甄别。德里和首都地区的分级响应行动计划(gambling)就是一个例子。
虽然该计划是由非常专业的专家组主导,但他们在实施方面所作的尝试都面临着工厂主、房地产经纪人、运输商、汽车制造商、农民甚至中央和州政府各级部门的挑战和游说,最终达成的结果最多不过是部分实行。草案没有提到短期内如何改善这种情况。
政治意愿仍显不足
解决印度空气污染问题难度很大,特别是在恒河平原这个风速相对较小的大山谷,大气中的污染物难以扩散。可是其他一些国家的山谷,虽然小很多,但污染物都被清除了,特别是洛杉矶所在的南加利福尼亚山谷。理论上讲,同样的措施本该在印度也奏效,关键在于是否有落实措施的政治决心。
要求一个政府部门起草的草案讨论政治决心或许有点要求太高,但它一定可以讨论如何提高公民参与的积极性。
印度很多城市,特别是北部地区的城市的居民如今会一边谈论着严重的空气污染问题,一边仍会开着柴油跑车,去买家用的空气净化器。
德里也许是世界上唯一一个因为司机不守交规导致快速公交通道计划破产的城市。所以迫切需要采取行动打击此类行为。
同样亟待解决的是,官员和技术专家需认可空气污染的民间监测。在北京,当居民们将简易的污染监测应用程序下载到他们的智能手机上,并开始四处分享污染指数后,有关方面才加大了空气污染的防控力度。
在印度,同样的尝试刚一冒头便引起了部委和中央污染控制委员会的极大反对,他们的官员怀疑空气检测仪的准确性并称其未进行正确校准。
技术专家们忽略了一点,相比空气质量已严重危害人们的事实,特定污染物浓度的准确性没那么重要。当然,官员需要数据来处理污染物及其来源。但接受和认可,而不是质疑人们的诉求才能更有力地落实相关法规。
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