सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मंगलवार को गिरफ़्तार किए गए पाँच
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को फ़िलहाल रिमांड पर नहीं भेजा जाएगा. कोर्ट ने
कहा है कि अगली सुनवाई होने तक इन सभी लोगों को घर में नज़रबंद रखा जाए.
ये हैं वामपंथी विचारक और कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस.
इतिहासकार
रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, देवकी जैन और माया दारुवाला
की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भारत सरकार और
महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है. इस मामले की अगली सुनवाई छह
सितंबर को होगी.
इन लोगों की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने
पत्रकारों से बातचीत में कहा, "जस्टिस वाईएस चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान
कहा कि ये बहुत दुर्भाग्य की बात है. ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा
है. जो दूसरों के अधिकार की बचाने की कोशिश कर रहे हैं, उनका मुँह बंद करना
चाहते हैं. ये लोकतंत्र के लिए बहुत ख़तरनाक है."
वरिष्ठ वकील वृंदा
ग्रोवर के मुताबिक़ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विरोध की आवाज़ लोकतंत्र
के लिए सेफ़्टी वॉल्व है और अगर आप सेफ्टी वाल्व को अनुमति नहीं देंगे तो
प्रेशर कुकर फट जाएगा.
दूसरी ओर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में मीडिया रिपोर्ट्स
पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा है कि आयोग को ऐसा लगता है कि इस मामले में
प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. इस कारण ये मानवाधिकार उल्लंघन का
मामला हो सकता है.
एनएचआरसी ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी करके चार सप्ताह के अंदर रिपोर्ट देने को कहा है.
पुणे
पुलिस ने मंगलवार को पाँच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया
गया था. जबकि अदालत के आदेश की वजह से इनमें से एक को घर में नज़रबंद कर
दिया गया.
पुलिस अधिकारी गिरफ़्तार लोगों को 'माओवादी हिंसा का दिमाग़' बता रहे हैं.
पुलिस का ये भी कहना है कि भीमा-कोरेगाँव में हुई हिंसा के लिए भी इन लोगों की भूमिका की जाँच की जा रही है.
ये कार्रवाई आतंक निरोधी कानून और भारतीय दंड संहिता की धारा 1
भारतीय जनता पार्टी ने गिरफ़्तारी के फ़ैसला का बचाव किया है. पार्टी
प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान की आलोचना
की.
उन्होंने कहा, "ये दुःख का विषय है कि राहुल गांधी जी नक्सलियों
को मानवाधिकार कार्यकर्ता मानते हैं, जो लोग दूसरों का खून बहाते हैं वो
कैसे मानवाधिकार कार्यकर्ता हो सकते हैं यह सोचने का विषय है. जब नक्सलियों
को आप गिरफ्तार करते हैं, तो वो नक्सली हैं और जब हम गिरफ्तार करते हैं तो
वे मानवाधिकार के लिए काम करने वाले हैं."
बीजेपी प्रवक्ता ने वरवर
राव और वरनॉन गोंज़ाल्विस का उदाहरण देते हुए कहा कि इन दोनों की
गिरफ़्तारी कांग्रेस के समय में हुई थी और उन्हें जेल भी भेजा गया था.
और 34 के तहत की गई.
इस कार्रवाई के ख़िलाफ़ अदालत में याचिका दायर की गई और दिल्ली में भी विरोध-प्रदर्शन हुआ.
दिल्ली में महाराष्ट्र सदन के बाहर इन गिरफ़्तारियों के ख़िलाफ़ विरोध
प्रदर्शन होना था, लेकिन उससे पहले ही पुलिस ने सदन के बाहर बैरिकेड खड़े
कर दिए थे.
पास खड़ी बसों में सुरक्षाबल के जवान बैठे थे जिन्होंने
पत्रकारों तक को महाराष्ट्र सदन से दूर रखा. जिस तरह की पुलिस की तैयारियां
थीं उस तादाद में प्रदर्शनकारी वहां नहीं पहुंचे.
जितने भी
प्रदर्शनकारी सदन के बाहर तक पहुंचे, उन्होंने पुणे पुलिस की कार्रवाई के
विरोध में नारे लगाए. कुछ प्रदर्शनकारी जहां वाम संगठन से जुड़े थे, सदन के
बाहर आम लोग भी पहुंचे.
कुछ प्रदर्शनकारी नरेंद्र मोदी को ट्रंप
कहकर बुला रहे थे. उनके हाथ में कई तरह के बैनर थे. एक पर लिखा था "ये
लोगों को परेशान करने जैसा है." एक अन्य बैनर पर लिखा था - "ये आपातकाल
है".
प्रदर्शन मे पहुंची अपर्णा ने कहा, ये सरकार अपनी सोच पूरे देश
पर थोपना चाहती है ताकि सांप्रदायिक ताकतों का बचाव किया जा सके. हम चाहते
हैं कि ऐसी नीतियों का सामना लोकतंत्र से किया जाए और गिरफ़्तार लोगों को
तुरंत रिहा किया जाए.
रिटायर्ड वैज्ञानिक गौहर रज़ा ने कहा, "मैं इन
झूठे मामलों का विरोध करता हूं. ये प्रदर्शन है आवाज़ दबाने के खिलाफ़. ये
प्रदर्शन है उन लोगों के लिए जो आम जनता के लिए, दलितों के लिए आवाज़ उठाते
रहे हैं. ये दमन 2019 तक चलता रहेगा."
रज़ा ने कहा, "जिन लोगों ने
इमरजेंसी देखी है या स्वतंत्रता संग्राम के बारे में पढ़ा है वो जानते हैं
कि डर क्या होता है. और कैसे सत्ता में बैठे लोग कोशिश करते हैं कि डर से
लोगों को दबा दिया जाए, उस आवाज़ को जो उनसे सवाल पूछ सकती है, या उनके
वायदे उन्हें याद दिला सकती है."
पिछले साल 31 दिसंबर को यलगार परिषद का आयोजन किया गया था. इस परिषद में
माओवादियों की कथित भूमिका की जांच में लगी पुलिस ने कई राज्यों में सात
कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी की और पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर
लिया गया.
इस परिषद का आयोजन पुणे में 31 दिसंबर 2017 को किया गया
था और अगले दिन 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव में दलितों को निशाना बनाकर बड़े
पैमाने पर हिंसा हुई थी. महाराष्ट्र में पुणे के क़रीब भीमा कोरेगांव गांव
में दलित और अगड़ी जाति के मराठाओं के बीच टकराव हुआ था.
भीमा
कोरेगांव में दलितों पर हुए कथित हमले के बाद महाराष्ट्र के कई इलाकों में
विरोध-प्रदर्शन किए गए. दलित समुदाय भीमा कोरेगांव में हर साल बड़ी संख्या
में जुटकर उन दलि
ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश सेना में शामिल दलितों (महार) ने मराठों को
नहीं बल्कि ब्राह्मणों (पेशवा) को हराया था. बाबा साहेब आंबेडकर खुद 1927
में इन सैनिकों को श्रद्धांजलि देने वहां गए थे.
मंगलवार सबेरे छापेमारी के बाद जो लोग गिरफ़्तार किए गए, उनमें हैदराबाद
से वरवर राव, मुंबई में वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फ़रेरा, फ़रीदाबाद में
सुधा भारद्वाज और नई दिल्ली में गौतम नवलखा शामिल हैं. रांची में स्टैन
स्वामी और गोवा में आनंद तेलतम्बदे के घर पर भी छापा मारा गया.
तों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने 1817 में पेशवा की
सेना के ख़िलाफ़ लड़ते हुए अपने प्राण गंवाए थे.
सुधा भारद्वाज एक वकील और ऐक्टिविस्ट हैं. वो दिल्ली के नेशनल लॉ
यूनिवर्सिटी में गेस्ट फ़ैकल्टी के तौर पर पढ़ाती हैं. सुधा ट्रेड यूनियन
में भी शामिल हैं और मज़दूरों के मुद्दों पर काम करती हैं. उन्होंने
आदिवासी अधिकार और भूमि अधिग्रहण पर एक सेमिनार में हिस्सा लिया था. वो
दिल्ली न्यायिक अकादमी का भी एक हिस्सा हैं.
वरवर राव
वरवर
पेंड्याला राव वामपंथ की तरफ़ झुकाव रखने वाले कवि और लेखक हैं. वो
'रेवोल्यूशनरी राइटर्स असोसिएशन' के संस्थापक भी हैं. वरवर वारंगल ज़िले के
चिन्ना पेंड्याला गांव से ताल्लुक रखते हैं. उन्हें आपातकाल के दौरान भी
साज़िश के कई आरोपों में गिरफ़्तार किया गया था, बाद में उन्हें आरोपमुक्त
करके रिहा कर दिया था.
वरवर की रामनगर और सिकंदराबाद षड्यंत्र जैसे
20 से ज़्यादा मामलों में जांच की गई थी. उन्होंनें राज्य में माओवादी
हिंसा ख़त्म करने के लिए चंद्रबाबू सरकार और माओवादी नेता गुम्माडी विट्ठल
राव ने मिलकर मध्यस्थता की थी. जब वाईएस राजशेखर रेड्डी सरकार ने
माओवादियों ने बातचीत की, तब भी उन्होंने मध्यस्थ की भूमिका भी निभाई.
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