Thursday, August 30, 2018

नज़रबंद रहेंगे गिरफ़्तार 'मानवाधिकार कार्यकर्ता'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मंगलवार को गिरफ़्तार किए गए पाँच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को फ़िलहाल रिमांड पर नहीं भेजा जाएगा. कोर्ट ने कहा है कि अगली सुनवाई होने तक इन सभी लोगों को घर में नज़रबंद रखा जाए.
ये हैं वामपंथी विचारक और कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस.
इतिहासकार रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, देवकी जैन और माया दारुवाला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है. इस मामले की अगली सुनवाई छह सितंबर को होगी.
इन लोगों की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "जस्टिस वाईएस चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा कि ये बहुत दुर्भाग्य की बात है. ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. जो दूसरों के अधिकार की बचाने की कोशिश कर रहे हैं, उनका मुँह बंद करना चाहते हैं. ये लोकतंत्र के लिए बहुत ख़तरनाक है."
वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर के मुताबिक़ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विरोध की आवाज़ लोकतंत्र के लिए सेफ़्टी वॉल्व है और अगर आप सेफ्टी वाल्व को अनुमति नहीं देंगे तो प्रेशर कुकर फट जाएगा.
दूसरी ओर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में मीडिया रिपोर्ट्स पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा है कि आयोग को ऐसा लगता है कि इस मामले में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. इस कारण ये मानवाधिकार उल्लंघन का मामला हो सकता है.
एनएचआरसी ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी करके चार सप्ताह के अंदर रिपोर्ट देने को कहा है.
पुणे पुलिस ने मंगलवार को पाँच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया था. जबकि अदालत के आदेश की वजह से इनमें से एक को घर में नज़रबंद कर दिया गया.
पुलिस अधिकारी गिरफ़्तार लोगों को 'माओवादी हिंसा का दिमाग़' बता रहे हैं.
पुलिस का ये भी कहना है कि भीमा-कोरेगाँव में हुई हिंसा के लिए भी इन लोगों की भूमिका की जाँच की जा रही है.
ये कार्रवाई आतंक निरोधी  कानून और भारतीय दंड संहिता की धारा 1
भारतीय जनता पार्टी ने गिरफ़्तारी के फ़ैसला का बचाव किया है. पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान की आलोचना की.
उन्होंने कहा, "ये दुःख का विषय है कि राहुल गांधी जी नक्सलियों को मानवाधिकार कार्यकर्ता मानते हैं, जो लोग दूसरों का खून बहाते हैं वो कैसे मानवाधिकार कार्यकर्ता हो सकते हैं यह सोचने का विषय है. जब नक्सलियों को आप गिरफ्तार करते हैं, तो वो नक्सली हैं और जब हम गिरफ्तार करते हैं तो वे मानवाधिकार के लिए काम करने वाले हैं."
बीजेपी प्रवक्ता ने वरवर राव और वरनॉन गोंज़ाल्विस का उदाहरण देते हुए कहा कि इन दोनों की गिरफ़्तारी कांग्रेस के समय में हुई थी और उन्हें जेल भी भेजा गया था.
और 34 के तहत की गई.
इस कार्रवाई के ख़िलाफ़ अदालत में याचिका दायर की गई और दिल्ली में भी विरोध-प्रदर्शन हुआ.
दिल्ली में महाराष्ट्र सदन के बाहर इन गिरफ़्तारियों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन होना था, लेकिन उससे पहले ही पुलिस ने सदन के बाहर बैरिकेड खड़े कर दिए थे.
पास खड़ी बसों में सुरक्षाबल के जवान बैठे थे जिन्होंने पत्रकारों तक को महाराष्ट्र सदन से दूर रखा. जिस तरह की पुलिस की तैयारियां थीं उस तादाद में प्रदर्शनकारी वहां नहीं पहुंचे.
जितने भी प्रदर्शनकारी सदन के बाहर तक पहुंचे, उन्होंने पुणे पुलिस की कार्रवाई के विरोध में नारे लगाए. कुछ प्रदर्शनकारी जहां वाम संगठन से जुड़े थे, सदन के बाहर आम लोग भी पहुंचे.
कुछ प्रदर्शनकारी नरेंद्र मोदी को ट्रंप कहकर बुला रहे थे. उनके हाथ में कई तरह के बैनर थे. एक पर लिखा था "ये लोगों को परेशान करने जैसा है." एक अन्य बैनर पर लिखा था - "ये आपातकाल है".
प्रदर्शन मे पहुंची अपर्णा ने कहा, ये सरकार अपनी सोच पूरे देश पर थोपना चाहती है ताकि सांप्रदायिक ताकतों का बचाव किया जा सके. हम चाहते हैं कि ऐसी नीतियों का सामना लोकतंत्र से किया जाए और गिरफ़्तार लोगों को तुरंत रिहा किया जाए.
रिटायर्ड वैज्ञानिक गौहर रज़ा ने कहा, "मैं इन झूठे मामलों का विरोध करता हूं. ये प्रदर्शन है आवाज़ दबाने के खिलाफ़. ये प्रदर्शन है उन लोगों के लिए जो आम जनता के लिए, दलितों के लिए आवाज़ उठाते रहे हैं. ये दमन 2019 तक चलता रहेगा."
रज़ा ने कहा, "जिन लोगों ने इमरजेंसी देखी है या स्वतंत्रता संग्राम के बारे में पढ़ा है वो जानते हैं कि डर क्या होता है. और कैसे सत्ता में बैठे लोग कोशिश करते हैं कि डर से लोगों को दबा दिया जाए, उस आवाज़ को जो उनसे सवाल पूछ सकती है, या उनके वायदे उन्हें याद दिला सकती है."
पिछले साल 31 दिसंबर को यलगार परिषद का आयोजन किया गया था. इस परिषद में माओवादियों की कथित भूमिका की जांच में लगी पुलिस ने कई राज्यों में सात कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी की और पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया.
इस परिषद का आयोजन पुणे में 31 दिसंबर 2017 को किया गया था और अगले दिन 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव में दलितों को निशाना बनाकर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी. महाराष्ट्र में पुणे के क़रीब भीमा कोरेगांव गांव में दलित और अगड़ी जाति के मराठाओं के बीच टकराव हुआ था.
भीमा कोरेगांव में दलितों पर हुए कथित हमले के बाद महाराष्ट्र के कई इलाकों में विरोध-प्रदर्शन किए गए. दलित समुदाय भीमा कोरेगांव में हर साल बड़ी संख्या में जुटकर उन दलि
ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश सेना में शामिल दलितों (महार) ने मराठों को नहीं बल्कि ब्राह्मणों (पेशवा) को हराया था. बाबा साहेब आंबेडकर खुद 1927 में इन सैनिकों को श्रद्धांजलि देने वहां गए थे.
मंगलवार सबेरे छापेमारी के बाद जो लोग गिरफ़्तार किए गए, उनमें हैदराबाद से वरवर राव, मुंबई में वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फ़रेरा, फ़रीदाबाद में सुधा भारद्वाज और नई दिल्ली में गौतम नवलखा शामिल हैं. रांची में स्टैन स्वामी और गोवा में आनंद तेलतम्बदे के घर पर भी छापा मारा गया.
तों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने 1817 में पेशवा की सेना के ख़िलाफ़ लड़ते हुए अपने प्राण गंवाए थे.
सुधा भारद्वाज एक वकील और ऐक्टिविस्ट हैं. वो दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में गेस्ट फ़ैकल्टी के तौर पर पढ़ाती हैं. सुधा ट्रेड यूनियन में भी शामिल हैं और मज़दूरों के मुद्दों पर काम करती हैं. उन्होंने आदिवासी अधिकार और भूमि अधिग्रहण पर एक सेमिनार में हिस्सा लिया था. वो दिल्ली न्यायिक अकादमी का भी एक हिस्सा हैं.
वरवर राव
वरवर पेंड्याला राव वामपंथ की तरफ़ झुकाव रखने वाले कवि और लेखक हैं. वो 'रेवोल्यूशनरी राइटर्स असोसिएशन' के संस्थापक भी हैं. वरवर वारंगल ज़िले के चिन्ना पेंड्याला गांव से ताल्लुक रखते हैं. उन्हें आपातकाल के दौरान भी साज़िश के कई आरोपों में गिरफ़्तार किया गया था, बाद में उन्हें आरोपमुक्त करके रिहा कर दिया था.
वरवर की रामनगर और सिकंदराबाद षड्यंत्र जैसे 20 से ज़्यादा मामलों में जांच की गई थी. उन्होंनें राज्य में माओवादी हिंसा ख़त्म करने के लिए चंद्रबाबू सरकार और माओवादी नेता गुम्माडी विट्ठल राव ने मिलकर मध्यस्थता की थी. जब वाईएस राजशेखर रेड्डी सरकार ने माओवादियों ने बातचीत की, तब भी उन्होंने मध्यस्थ की भूमिका भी निभाई.

Sunday, August 26, 2018

中国雾霾抑制措施“过于软弱”,无法预防一百万例过早死亡

中国风电行业去年增幅达到60%,超越欧盟成为全球最大的风电生产国。

全球风能理事会( )月初发布的报告显示,由于政府大力支持新风力发电场的建设,中国目前的装机容量已达到1.451亿千瓦,超越了欧盟的1.416亿千瓦。


“风电在能源行业转型的过程中率先冲锋。”全球风能理事会秘书长史蒂夫·索亚说。

“风能在价格、性能和可靠性等方面的竞争力正逐渐增强,并在非洲、亚洲和拉丁美洲都开辟了新的市场,这些地区都将成为未来十年市场的领导者。”他说。

当前,中国重工业的发展逐步减速,令人窒息的烟雾笼罩着城市的上空,整个国家正在陷入
健康危机之中。因此,降低对煤炭的依赖成为中国政府追求发展清洁能源的主要原因。

2015年,全球风电新增装机容量超过6300万千瓦,与去年相比增长22%。其中,中国新增3050万千瓦,几乎占全球新增总量的一半。美国新增860万千瓦。与此同时,德国新增装机容量创历史新高,达到600万千瓦(其中230万千瓦位于海上),居欧盟之首。2015年末,德国的全球总容量达到4320万千瓦,累积增长17%,其他国家都无法与之相比。

在亚洲,印度新增260万千瓦,超越西班牙成为全球累积容量第四大国家,前三位分别为中国、美国和德国。日本、韩国和台湾的风能发电量也有所增加。
虽然风能在中国能源结构中的地位日益突出,但煤炭仍旧是中国电力生产最主要的原料。

此外,尽管中国的风电装机容量居世界首位,但由于存在
煤电优先上网、新基础设施建设延误等电网问题,这些装机量很多都无法利用。

据新华社报道,由于新设备与旧式电网的连接存在问题,中国国家能源局可能会叫停内蒙古、新疆以及吉林地区风力发电场的建设。除非其他申明,本网站及其内容受知识共享组织的“署名-非商业性使用-禁止演绎"2.0 英国:英格兰和威尔士协议和 2.5 中国大陆协议的保护。

Wednesday, August 15, 2018

英国学者:电子烟“对人体安全”的说法可能有误

电子烟(又称电子雾化器)是否真的比传统香烟“健康”?如果你问英国卫生部门,它们会回应说“是”。但当地一家大学最新的研究结果显示,答案并不是这么简单。
英格兰公共卫生署(Public Health England)今年二月曾发表报指,有证据显示电子烟对健康的损害比一般香烟少。它更建议吸烟人士应利用电子烟,协助他们戒烟。
但是,英国伯明翰大学( )教授蒂克特( 最新在医学双月刊《胸腔》(T )发表的研究报告指,电子烟令人体内重要的免疫细胞失去功用,并警告早前电子烟“对人体安全”的说
此前有关电子烟的研究大都集中在电子烟的化学成份,蒂克特的项目首次集中研究电子烟对吸烟者身体影响。
研究员从八名没有吸烟习惯的人抽取肺样本,在实验室内测试电子烟对这些样本的影响。他们发现,电子烟放出的烟雾令这些肺组织发炎,样本内的肺泡巨噬细胞也受烟雾影响减少活动。这种细胞负责清除人体内可能有害的尘粒、细菌和致敏原
研究员指,实验中肺样本的反应,与一般吸烟者肺部和肺病长期患者的反应差不多。研究员同时强调,实验室内的模拟测试只进行了48小时,结果不能作准,他们必须进行更多研究,才能断定电子烟对人体的长期影响。
负责研究的蒂克特教授指出,如果只比较香烟与电子烟的化学成份,那么电子烟含有的致癌物的确要比传统香烟少。英格兰公共卫生署和英国国民保健署分别都指出电子烟对人体的伤害以传统香烟少,但他认为电子烟在长远来说可能仍然有害。
他认为,电子烟的致癌性的确比传统香烟少,但“如果一个人吸食电子烟长达二三十年,而这个习惯有可能导致慢性阻塞性肺病的话,那是我们需要知道的事情”。
他补充他不认为电子烟比一般香烟有害,但外界应对它抱有怀疑态度,确保它宣称对人体的影响与实际影响一致。
英格兰公共卫生署官员多克雷尔( )指出,电子烟并不是百分百安全,但它们对健康的损害明显比普通香烟少。
他说:“任何正考虑转抽电子烟的人,都应该立即行动。法可能有误。